शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

मानव मानव एक सामान

काल कलरव समय का वह गान है जिसकी अनुभूतियाँ शब्द बन कर आपके सामने प्रस्तुत करना चाहूँगा.  असत्य, अहिंसा प्रेम और शांति का सार वैदिक संस्कृति में ही निहित है. क्योंकि वैदिक संस्कृति ही मात्र ऐसी संस्कृति है जो किसी वर्ग विशेष अथवा देश विशेष के कल्याण की कामना नहीं करती अपितु समस्त ब्रह्माण्ड और समस्त जीवों के सम्पूर्ण कल्याण की कामना करती है.

प्रथम मैं अपनी कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ,


मानव मानव एक सामान

मानव मानव एक सामान
एक पिता की सब संतान.

सबकी है धरती, है सबका गगन 
सबका है सूरज, है सबका पवन 

दुःख-सुख अपने मिले जुले हैं,
क्या आंसू और क्या मुस्कान.

मानव मानव एक सामान

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